Lathyrus in Hindi: खेसारी और अन्य क्षेत्रीय नाम
Lathyrus sativus, जिसे अंग्रेजी में ग्रास पी या चिक्लिंग पी कहते हैं, का हिंदी में सबसे प्रचलित नाम खेसारी है। भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में लतरी और बिहार में तिवरी या तेओरा। यह एक महत्वपूर्ण दलहन फसल है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ पानी की कमी होती है, क्योंकि यह कठोर परिस्थितियों में भी आसानी से उग सकती है।
खेसारी के अन्य क्षेत्रीय नाम
खेसारी के नामकरण में क्षेत्रीय विविधता काफी देखने को मिलती है। यह विविधता भारत की भाषाई और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती है।
- खेसारी/खेसाड़ा: हिंदी, असमी और बंगाली में
- लतरी: पूर्वी उत्तर प्रदेश में
- तिवरा/तिवरी: बिहार और कुछ अन्य क्षेत्रों में
- लाख/लाखोड़ी: मराठी में
- केसरी: तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम में
- खेसरी: नेपाली में
खेसारी दाल का इतिहास और महत्व
खेसारी दाल का इतिहास बहुत पुराना है। यह सबसे प्राचीन खेती वाली फसलों में से एक है। सदियों से, यह गरीबों के लिए प्रोटीन का एक सस्ता और सुलभ स्रोत रही है। इसकी कठोरता इसे सूखे और बाढ़ जैसी चरम जलवायु परिस्थितियों में भी जीवित रहने में सक्षम बनाती है, जिससे यह खाद्य सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण फसल बन जाती है। प्राचीन काल से ही इसका उपयोग न केवल भोजन के लिए, बल्कि पशुओं के चारे और हरी खाद के रूप में भी होता रहा है।
खेसारी की विषाक्तता और आधुनिक उपयोग
खेसारी का सबसे बड़ा नुकसान इसमें पाए जाने वाले एक न्यूरोटॉक्सिन, ऑक्सायल डाई अमाइनोप्रोपनिक एसिड (ODAP) के कारण होता है। इसका अत्यधिक सेवन लकवा (न्यूरोलैथिरिज्म) का कारण बन सकता है। इसी कारण से, भारत के कुछ राज्यों में इसकी बिक्री पर प्रतिबंध भी लगाया गया था, हालाँकि आज भी ग्रामीण इलाकों में इसका सेवन होता है। वर्तमान में, कम ODAP सामग्री वाली उन्नत किस्मों का विकास किया गया है, जिसने इसके उपयोग को सुरक्षित बनाया है।
खेसारी के सुरक्षित सेवन के तरीके
न्यूरोटॉक्सिन के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ पारंपरिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ तरीके इस प्रकार हैं:
- पकाकर खाना: दाल को अच्छी तरह से पकाने से विषाक्तता काफी हद तक कम हो जाती है।
- उबालना और सुखाना: बीजों को पानी में भिगोकर उबालना और फिर सुखाना, विष को निष्क्रिय करने का एक प्रभावी तरीका है।
- अन्य दालों के साथ मिलाना: खेसारी को अन्य दालों के साथ मिलाकर खाने से भी इसका जोखिम कम हो सकता है।
- कम मात्रा में सेवन: संतुलित आहार के हिस्से के रूप में सीमित मात्रा में सेवन करना सबसे सुरक्षित तरीका है।
खेसारी और अन्य लोकप्रिय दालों का तुलनात्मक विश्लेषण
| विशेषताएँ | खेसारी (Lathyrus) | अरहर दाल (Pigeon Pea) | मसूर दाल (Lentil) |
|---|---|---|---|
| बोटैनिकल नाम | Lathyrus sativus | Cajanus cajan | Lens culinaris |
| मुख्य पोषक तत्व | उच्च प्रोटीन, फाइबर | उच्च प्रोटीन, फाइबर, फोलेट | उच्च प्रोटीन, फाइबर, आयरन |
| विषाक्तता | ODAP नामक न्यूरोटॉक्सिन के कारण संभावित जोखिम | कोई विषाक्तता नहीं | कोई विषाक्तता नहीं |
| खेती की स्थिति | सूखे और कठोर मौसम में भी उगने में सक्षम | मानसून में उगाया जाता है, कम कठोर | विभिन्न जलवायु में उगाया जाता है, कम कठोर |
| स्वाद | हल्का कड़वा और मीठा, अखरोट जैसा | हल्का मीठा, अखरोट जैसा | मिट्टी जैसा, हल्का मीठा |
| पौष्टिकता | अत्यधिक पौष्टिक (कम मात्रा में) | उच्च पौष्टिकता | उच्च पौष्टिकता |
निष्कर्ष
संक्षेप में, Lathyrus का हिंदी में नाम खेसारी है, जिसके अन्य क्षेत्रीय नाम लतरी और तिवरा भी हैं। यह एक महत्वपूर्ण लेकिन विवादास्पद दलहन है, जो अपने पोषण मूल्य और कठोरता के कारण खाद्य सुरक्षा में योगदान देता रहा है। हालांकि, इसके न्यूरोटॉक्सिन की उपस्थिति के कारण इसके सेवन को लेकर सावधानी बरती जानी चाहिए। उचित प्रसंस्करण और संतुलित आहार के हिस्से के रूप में इसका सेवन सुरक्षित हो सकता है, विशेष रूप से कम विषैले किस्मों के आगमन के बाद। इसके लंबे इतिहास और सांस्कृतिक महत्व ने इसे भारतीय व्यंजनों का एक हिस्सा बना दिया है। अधिक जानकारी के लिए, CABI Digital Library जैसे विश्वसनीय स्रोतों को देखा जा सकता है.
खेसारी के बारे में अधिक जानकारी
खेसारी का वानस्पतिक नाम क्या है?
Lathyrus sativus। इसे आमतौर पर ग्रास पी, चिक्लिंग पी और भारतीय मटर भी कहते हैं।
खेसारी के सेवन से क्या नुकसान हो सकता है?
अत्यधिक और लगातार सेवन से न्यूरोलैथिरिज्म नामक लकवा हो सकता है, जो इसके बीजों में मौजूद न्यूरोटॉक्सिन (ODAP) के कारण होता है।
क्या खेसारी दाल खाना सुरक्षित है?
हाँ, यदि इसे कम मात्रा में और उचित प्रसंस्करण जैसे कि भिगोना, उबालना और सुखाना करके खाया जाए। आधुनिक कम-विषैले किस्मों का सेवन भी सुरक्षित माना जाता है।
खेसारी कहाँ उगाया जाता है?
यह भारत, बांग्लादेश, नेपाल, इथियोपिया और भूमध्यसागरीय क्षेत्रों सहित दुनिया के कई देशों में उगाया जाता है।
खेसारी का उपयोग किसलिए किया जाता है?
इसका उपयोग दाल बनाने, पशुओं के चारे के रूप में, हरी खाद के लिए, और कुछ मामलों में सब्जियों और आटे के लिए भी किया जाता है।
खेसारी को कौन सी जलवायु पसंद है?
यह एक बहुत ही कठोर फसल है और सूखे जैसी चरम जलवायु परिस्थितियों में भी जीवित रह सकती है।
क्या सभी प्रकार की Lathyrus विषाक्त होती हैं?
नहीं, Lathyrus की कई प्रजातियाँ हैं, और उनकी विषाक्तता अलग-अलग होती है। Lathyrus sativus और L. cicera सबसे अधिक विषाक्तता से जुड़ी हुई हैं.